ये सड़क है वही
शहर की तरफ गया था कभी
मुड़ा नही फिर
गाँव की तरफ
#Infinity
Saturday, October 24, 2020
Saturday, October 3, 2020
निष्ठुर ख्वाब गरीबी के
मेरी दुनिया वहीं
कहीं कोने में ही पड़ी है
मेरे सपनों का मोल
निर्धारित है मेरे पैदाइश के पहले से ही
बिक गए कौड़ियों के भाव सब पहली ही खेप में
अकीदतमंद है सिर्फ मेरी मेहनत
काफिर है सारे मेरे ख्वाब
बस कत्ल के लायक
मेरी औकाद
मेरे फटे कपड़े की दहलीज नहीं लांघती कभी
पूरी कोशिश से भी
मेहनत मेरी चमक साहब के चेहरे की
बनाये थे ताजमहल साहब
सारी दुनिया जानती है यही।
#Infinity
Wednesday, September 9, 2020
कामदार
मेरी दुनिया वहीं कहीं कोने में ही पड़ी है
मेरे सपनों का मोल पैदा होने से पहले से निर्धारित थे
बिक गए कौड़ियों के भाव
अकीदतमंद है मेरी मेहनत काफिर है सपने मेरे
बस कत्ल के लायक
मेरी औकाद मेरे फाटे कपड़े की दहलीज नहीं लांघ पाती
साहेब बनाये थे ताजमहल सारी दुनिया यही कहती है।
#Infinity
Saturday, September 5, 2020
बेकसूर गुनाहगार
बेकसूर गुनाहगार
मैं खुश हूं तो ग़म किसको है
क्यों तेरे अगोशे-शुकून का गुनाहगार हूँ मैं।
#Infinity
Friday, July 31, 2020
शुशांत शांत हो गया
शुशांत शांत हो गया
लटक गया कुनबापरस्ती के रस्सी से
दोस्त थी उसकी कोई
जिसका प्यार फरेब की चाशनी में डूबा जलेबी निकाला शायद
मेधावी था शायद बुद्ध की बुद्धि थी उसमें
तभी हल्के सोंच वालो के बीच जी न पाया
बड़ा अभिनेता बनाता शायद
दिल मे छुड़ी छुपाये
बहरूपीओ के शहर को अलविदा कह चल दिया
अपने चांद पर वाली जमी पे आशियाना बनाने
शुशांत शांत हो गया।
#Infinity
Sunday, May 17, 2020
हमारा हक नही।
मेरे रहनुमा ने निकल दिए अपने दहलीज से
मजदूर है हम गरीब
मकान बनाते है
घर पे हमारा हक नहीं।
#Infinity
Thursday, May 14, 2020
Monday, May 11, 2020
गाँव
गाँव कहता है सबसे, लौट आओ दुबारा
आओ परदेश छोड़े, घर के ईटों को जोड़ें
आओ परदेश छोड़ें, चलें गाँव फ़िर से
माँ क स्नेह मिलेगा, और दुलार बहन का
मिलेगी बगल की शादियों की खुशियाँ.
किसी अपने को अब एक कन्धा मिलेगा
फ़िर खेलेंगे कबड्डी
अमिया तोड़गें, और खायेंगे जामुन
फ़िर से कंचे की खन-खन गूँजा करेगी,
लुक्का-छुप्पी चलेगी, नहायेंगी नदियाँ.
बाबा के कन्धे को, चाहिये अब सहारा,
दादी की कहानियों को कान मिलेगा.
अपने खेतों की मीठी खुशबू मिलेगी
दौड़ेंगे भागेंगे, तेज बहुत तेज फ़िर से,
पतंगे उड़ेंगी, चलेंगी गुलेलें.
बहन बाँधेगी, राखी चहक के
चाची फ़िर गायेगी गीतों कि लड़ियाँ
कन्धे पे घूमेंगे चाचा के फ़िर से,
अब कोई यहाँ न गैर होगा.
चलो आओ, गाँव अकेला पड़ा है,
नीरस, अकड़ा और मरा - सा पड़ा है,
चल के फ़िर से उसे जिंदा करें हम,
अपने लोगों की टूटी खुशियाँ लौटाए
अपनी खुशियों के घुटते दम को फ़िर से
निर्गुण, निर्दोष शुरुआत दे आएँ
चलो आओ फ़िर हम
एक बार गाँव हो आ