शुशांत शांत हो गया
लटक गया कुनबापरस्ती के रस्सी से
दोस्त थी उसकी कोई
जिसका प्यार फरेब की चाशनी में डूबा जलेबी निकाला शायद
मेधावी था शायद बुद्ध की बुद्धि थी उसमें
तभी हल्के सोंच वालो के बीच जी न पाया
बड़ा अभिनेता बनाता शायद
दिल मे छुड़ी छुपाये
बहरूपीओ के शहर को अलविदा कह चल दिया
अपने चांद पर वाली जमी पे आशियाना बनाने
शुशांत शांत हो गया।
#Infinity
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