सुबह की शबनम की तरह तेरी आँखों की चमक
शाम के गिरते अंधेरों की तरह जुल्फों की छाव
गुलाब की पंखुड़ी सा तेरी होठों का एहसास
बारह मास खिलने वाले फूलो सा तेरा ये मन
कहाँ से लाई हो ये किस जहां से उतर के आई हो
मेरी जहन मे थी एक तस्वीर
अक्स बनाता था हमेशा मन के जमींन पर
बिलकुल उसी की तरह नजर आती हो तुम
आब आई हो तो पास ही रहना
बुढ़ापा बिताएँगे साथ-साथ
एक दूसरे की उंगली थामे
कंधे संभाले
चलेगे साथ, सात जन्मो की राह पर एक साथ ही
इस जिंदगी के चुक जाने के बाद
अब जिंदगी के हर हिस्से पर
किसी और का भी हक है
कोई और भी चिंतित है
सोंचते है हम भी अब किसी और के लिए
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