उस छोटी सी बच्ची के छोटे से बस्ते में एक टूटी हुई पेन्सिल और और एक आधा स्लेट मन ही मन जोर जोर से कहा रहा है, मै भी पढाना चाहता हूँ डिग्री इससे पहले कि कोई शादी की डोर बाँध ले जाए मेरे सपने कही और जहाँ अस्तित्व के नाम पे सिर्फ माँ बहू बन के रह जाओ.. मै भी बनाना चाहती होऊ कल्पना चावला किरण वेदी कि अधिकार है मेरा भी कुछ और बनाने का
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