Saturday, June 21, 2014
Wednesday, June 18, 2014
Friday, June 13, 2014
उसकी जान जाती रही है और भीड़ छटती रही
वहाँ भीड़ लगी थी कोई अधमरा पड़ा था शायद ...
उसकी जान जाती रही है और भीड़ छटती रही .....
--->Infinity
उसकी जान जाती रही है और भीड़ छटती रही .....
--->Infinity
Thursday, June 12, 2014
नहीं तो सूरज की रोशनी मे जल गया होता चाँद
उसकी जुल्फों की छाव ने किया था एहसान
नहीं तो सूरज की रोशनी मे जल गया होता चाँद.....
......... Infinity
नहीं तो सूरज की रोशनी मे जल गया होता चाँद.....
......... Infinity
बचा लो मुझे कि मैं उत्तर प्रदेश हू
मैं ब्लाटकारियों और छद्म मनुस्यों का शेष हू
मैं घमंडी एहंकारी नेताओं का अवशेष हू
मुझे उठाओ कि तुम्हारा ही एक भेष हू
बचा लो मुझे कि मैं उत्तर प्रदेश हू
------ Infinity
मैं घमंडी एहंकारी नेताओं का अवशेष हू
मुझे उठाओ कि तुम्हारा ही एक भेष हू
बचा लो मुझे कि मैं उत्तर प्रदेश हू
------ Infinity
Wednesday, June 11, 2014
ज़िंदगी की पतंग को हम देते रहे ढ़ील
ज़िंदगी की पतंग को हम देते रहे ढ़ील
और लोग काटते रहे ..
......Infinity
और लोग काटते रहे ..
......Infinity
Wednesday, June 4, 2014
माँ के संभाले कंगन टूट गए पिता का मन बदनशीब हो गया कोई दरिंदा लूट गया कई सपनों को
माँ के संभाले कंगन टूट गए पिता का मन बदनशीब हो गया कोई दरिंदा लूट गया कई सपनों को
माँ ने संभाल रक्खे थे कंगन अपनी शादी वाले
बेटी जब जाएगी ससुराल तो पहना कर भेजेगी
अपनी निशानी उसको
भाई ने जोड़ लिए तो कुछ पैसे
बहन को अपने औकात से विदा करने के लिए
पिता का मन रोज हो जाता था भावुक
की बेटी जब चली जाएगी ससुराल तो
तो कितना लगेगा सन्नाटा
भेजता था बेटी को स्कूल की
पढ़ लिख जाएगी
तो अपने पैरो पे मजबूत खड़ी हो पाएगी
पर नजर लग गई न जाने किसकी
उस पिता के सपनों पर
उस भाई के उम्मीद पर
और उस माँ की ममता पर
कल लाश मिली उसकी पेड़ पर लटकी हुई
किसी दरिंदे ने लूट ली थी उसकी आबरू
और लोग जला रहे थे मोमबत्तीय
और रहनुमान सेंक रहे थे अपनी रोटिया
पूरा परिवार उस बेटी का कमरे के अंदर बंद
समझ नहीं पा रहा था की क्या करे
क्या करने के लिए रहे इस धरती पे
और दरिंदा अपनी दरिंदगी को
गलती मान घूम रहा था काही मस्ती मे
रोटी रही माँ टूटते रहे पिता भीतर ही भीतर
भाई बाधवास घूम रहा था अपनी ख़यालो मे
अधमरा अधमरा सा ........
-------------------->Infinity
माँ ने संभाल रक्खे थे कंगन अपनी शादी वाले
बेटी जब जाएगी ससुराल तो पहना कर भेजेगी
अपनी निशानी उसको
भाई ने जोड़ लिए तो कुछ पैसे
बहन को अपने औकात से विदा करने के लिए
पिता का मन रोज हो जाता था भावुक
की बेटी जब चली जाएगी ससुराल तो
तो कितना लगेगा सन्नाटा
भेजता था बेटी को स्कूल की
पढ़ लिख जाएगी
तो अपने पैरो पे मजबूत खड़ी हो पाएगी
पर नजर लग गई न जाने किसकी
उस पिता के सपनों पर
उस भाई के उम्मीद पर
और उस माँ की ममता पर
कल लाश मिली उसकी पेड़ पर लटकी हुई
किसी दरिंदे ने लूट ली थी उसकी आबरू
और लोग जला रहे थे मोमबत्तीय
और रहनुमान सेंक रहे थे अपनी रोटिया
पूरा परिवार उस बेटी का कमरे के अंदर बंद
समझ नहीं पा रहा था की क्या करे
क्या करने के लिए रहे इस धरती पे
और दरिंदा अपनी दरिंदगी को
गलती मान घूम रहा था काही मस्ती मे
रोटी रही माँ टूटते रहे पिता भीतर ही भीतर
भाई बाधवास घूम रहा था अपनी ख़यालो मे
अधमरा अधमरा सा ........
-------------------->Infinity
Tuesday, June 3, 2014
Subscribe to:
Posts (Atom)