Monday, May 11, 2020

गाँव



गाँव कहता है सबसे, लौट आओ दुबारा
आओ परदेश छोड़े, घर के ईटों को जोड़ें
आओ परदेश छोड़ें, चलें गाँव फ़िर से
माँ क स्नेह मिलेगा, और दुलार बहन का
मिलेगी बगल की शादियों की खुशियाँ.
किसी अपने को अब एक कन्धा मिलेगा
फ़िर खेलेंगे कबड्डी
अमिया तोड़गें, और खायेंगे जामुन
फ़िर से कंचे की खन-खन गूँजा करेगी,
लुक्का-छुप्पी चलेगी, नहायेंगी नदियाँ.
बाबा के कन्धे को, चाहिये अब सहारा,
दादी की कहानियों को कान मिलेगा.
अपने खेतों की मीठी खुशबू मिलेगी
दौड़ेंगे भागेंगे, तेज बहुत तेज फ़िर से,
पतंगे उड़ेंगी, चलेंगी गुलेलें.
बहन बाँधेगी, राखी चहक के
चाची फ़िर गायेगी गीतों कि लड़ियाँ
कन्धे पे घूमेंगे चाचा के फ़िर से,
अब कोई यहाँ न गैर होगा.
चलो आओ, गाँव अकेला पड़ा है,
नीरस, अकड़ा और मरा - सा पड़ा है,
चल के फ़िर से उसे जिंदा करें हम,
अपने लोगों की टूटी खुशियाँ लौटाए
अपनी खुशियों के घुटते दम को फ़िर से
निर्गुण, निर्दोष शुरुआत दे आएँ
चलो आओ फ़िर हम
एक बार गाँव हो आ

No comments:

Post a Comment